महान ऋषि दधीचि कौन थे? Best Hindi Dadhich Life Story you are
महान ऋषि दधीचि कौन थे? Best Hindi Dadhich Life Story you are
महर्षि दधीचि कौन थे –
महर्षि प्राचीन काल में एक परम तपस्वी हुए, जिनका नाम महर्षि दधीचि था। उनके पिता एक महान ऋषि अथर्वा जी थे और माता का नाम शांति था। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन शिव की भक्ति में व्यतीत किया था।

संसार में कुछ व्यक्तित्व ऐसे भी होते हैं जो परोपकार हेतु अपने हितों का बलिदान कर देते हैं। हमारे देश में ऐसे अनेक पुरुष और नारियाँ हुई हैं, जिन्होंने दूसरों की सहायता और भलाई के लिए स्वयं कष्ट सहे हैं। जैसे maharshi dadhichi ki jivani से पता लगता है।
ऐसे ही महान परोपकारी पुरुषों में maharshi dadhichi का नाम आदर के साथ लिया जाता है। maharshi dadhichi नैमिषारण्य (सीतापुर- u.p.) के घने जंगलों के मध्य आश्रम बना कर रहते थे। उन्हीं दिनों देवताओं और असुरों में लड़ाई छिड़ गई। देवताओं के हार जाने का अर्थ था असुरों का राज्य स्थापित हो जाना। वे पूरी शक्ति से लड़ रहे थे। देवताओं ने असुरों को हराने के अनेक प्रयत्न किए किंतु सफल नहीं हुए।
हताश देवतागण अपने राजा इंद्र के पास गए और बोले राजन- हमें युद्ध में सफलता के आसार नहीं दिखाई पड़ते, क्यों न इस विषय में ब्रह्मा जी से कोई उपाय पूछें ?" इंद्र देवताओं की सलाह मानकर ब्रह्माजी के पास गए। इंद्र ने उन्हें अपनी चिंता से अवगत कराया। ब्रह्मा जी बोले- हे देवराज! त्याग में इतनी शक्ति होती है कि उसके बल पर किसी भी असंभव कार्य को संभव बनाया जा सकता है लेकिन दुःख है कि इस समय आप में से कोई भी इस मार्ग पर नहीं चल रहा है।"
ब्रह्मा जी की बातें सुनकर देवराज इंद्र चिंतित हो गए, वे बोले- फिर क्या होगा ?
ब्रह्मा जी ने बताया –“नैमिषारण्य वन में एक तपस्वी तप कर रहे हैं। उनका नाम दधीचि है। उन्होंने तपस्या
और साधना के बल पर अपने अंदर अपार शक्ति जुटा ली है, यदि उनकी अस्थियों से बने अस्त्रों का प्रयोग
करें तो असुर निश्चित ही परास्त होंगे।"
इंद्र ने कहा- "किंतु वे तो जीवित हैं! उनकी अस्थियाँ भला हमें कैसे मिल सकती हैं ?" ब्रह्मा जी ने कहा- "मेरे पास जो उपाय था, मैंने आपको बता दिया। शेष समस्याओं का समाधान स्वयं दधीचि कर सकते हैं"।
देवराज इंद्र झिझकते हुए महर्षि दधीचि के आश्रम पहुँचे। maharshi dadhichi उस समय ध्यानावस्था में थे। इंद्र उनके सामने हाथ जोड़कर याचक की मुद्रा में खड़े हो गए। ध्यान भंग होने पर उन्होंने इंद्र को बैठने के लिए कहा, फिर उनसे पूछा - "कहिए देवराज कैसे आना हुआ ?" इंद्र बोले- "maharshi dadhichi क्षमा करें, मैंने आपके ध्यान बाधा पहुँचाई है। maharshi dadhichi आपको ज्ञात होगा, इस समय देवताओं पर असुरों ने चढ़ाई कर दी है। वे तरह-तरह के अत्याचार कर रहे हैं। उनका सेनापति वृत्रासुर बहुत ही क्रूर और अत्याचारी है, उससे देवता हार रहे हैं।" maharshi dadhichi ने कहा - "मेरी भी चिंता का यही विषय है, आप ब्रह्मा जी से बात क्यों नहीं करते ?" इंद्र ने कहा- " मैं उनसे बात कर चुका हूँ। उन्होंने उपाय भी बताया है किंतु ... ..?" "किंतु... ..... किंतु क्या ? देवराज ! आप रुक क्यों गएं ? साफ-साफ बताइए । मेरे प्राणों की भी जरूरत होगी तो भी मैं सहर्ष तैयार हूँ। इंद्र ने कहा - हे महर्षि ! "ब्रह्मा जी ने बताया है कि आपकी अस्थियों से अस्त्र बनाया जाए तो वह वज्र के समान होगा। वृत्रासुर को मारने हेतु ऐसे ही वज्रास्त्र की आवश्यकता है।"
इंद्र की बात सुनते ही maharshi dadhichi का चेहरा कांतिमय हो उठा। उन्होंने सोचा, मैं धन्य हो गया। उनका रोम-रोम पुलकित हो गया।
प्रसन्नतापूर्वक maharshi dadhichi बोले- "देवराज आपकी इच्छा अवश्य पूरी होगी। मेरे लिए इससे ज्यादा गौरव की बात और क्या होगी ? आप निश्चय ही मेरी अस्थियों से वज्र बनवाएं और असुरों का विनाश कर चारों ओर शांति स्थापित करें।"
दधीचि ने ध्यानावस्था में अपने नेत्र बंद कर लिए। उन्होंने योग बल से अपने प्राणों को शरीर से अलग कर लिया। उनका शरीर निर्जीव हो गया। देवराज इंद्र आदर से उनके मृत शरीर को प्रणाम कर अपने साथ ले आए। maharshi dadhichi की अस्थियों से वज्र बना, जिसके प्रहार से वृत्रासुर मारा गया। असुर पराजित हुए और देवताओं की जीत हुई।
maharshi dadhichi को उनके त्याग के लिए आज भी लोग श्रद्धा से याद करते हैं। नैमिषारण्य में प्रतिवर्ष फाल्गुन माह में उनकी स्मृति में मेले का आयोजन होता है। यह मेला महर्षि के त्याग और मानव सेवा के भावों की याद दिलाता है।
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