जादूगरनी और मेंढक | Jadugarnee aur mendhak
Jadugarnee aur mendhak
कल्पना करें कि आप अपने दर्शकों को छड़ी घुमाकर मंत्रमुग्ध कर दें और देखें कि यह मनमोहक प्राणी हवा से बाहर कैसे निकलता है। अपने जीवंत रंगों और जीवंत आंखों के साथ, "Jadugarnee aur mendhak" आपके जादुई प्रदर्शन का सितारा बन जाएगा। यह पढ़ने के लिए तैयार हो जाइए कि जब यह मनोरम उभयचर हरकत में आता है तो जबड़े हिल जाते हैं और दिल धड़कने लगते हैं।जादूगरनी और मेंढक
लंबे घने काले बालों वाली एक लड़की थी, अन्नू ! वह बहुत मेहनती और हंसमुख स्वभाव वाली थी, जबकि उसका छोटा भाई जीतू थाड़ा आलसी और शैतान था। दो बरस पहले की बात है। उसके पिता पास के जंगल में शिकार करने गए थे और फिर वहां से कभी वापस नहीं लौटे। अन्नू और जीतू की मां को उम्मीद थी कि वे एक दिन जरूर लौट कर आएंगे। वह हर शाम खिड़की में एक दीया जला कर रखती थी, ताकि जब उसके पिता जंगल से वापस लौटें तो इसकी रोशनी में उन्हें रास्ता दिख सके ।एक दिन उनकी मां ने दोनों बच्चों को बुला कर कहा, "मेरी तबीयत ठीक नहीं रहती है और अब ज्यादा काम करने की मुझमें ताकत भी नहीं बची है। हमारे छप्पर से पानी टपकता है। हमें इसकी मरम्मत करनी होगी। इसके लिए लंबे-लंबे सरकंडों की जरूरत है। तुम लोग जंगल जाओ। वहां बीच में एक झील है। उसके किनारे-किनारे लंबे-लंबे सरकंडे उगे हुए हैं, जो हमारे छप्पर के हिसाब से बिल्कुल ठीक होंगे। जाओ और जितने ला सको, ले आओ। बारिश का मौसम शुरू होने वाला है।"
अगले दिन अन्नू और जीतू सुबह जल्दी उठ गए। उन्होंने खाना बांधा और जंगल के लिए निकल पड़े। दिन निकलने तक जीतू थक गया और अब वह आगे नहीं चलना चाहता था। उने कहा, “अन्नू ! यहीं रुको!! हम लोग यहीं पर खाना खाते हैं और उसके बाद खेलते हैं। शाम होने तक हम वापस घर चले जाएंगे और मां से कह देंगे कि झील तो हमें मिली ही नहीं, इसलिए हम सरकंडे भी नहीं ला सके।" अन्नू ने अपने भाई की तरफ घूर कर देखा। वह उसकी चालों को अच्छी तरह समझती थी। इसलिए उसने कहा, "तुम अकेले ही यहां रुको और खेलो, लेकिन मैं तो झील खोजने के लिए जंगल के भीतर जा रही हूं।"
यूं तो जीतू बहुत बहादुर बनता था लेकिन जंगल में अकेले रहने का नाम सुन कर उसकी सिट्टी-पिट्टी ही गुम हो गई। उसने कहा, "मैं तुम्हें जंगल में अकेले नहीं जाने दूंगा, तुम किसी मुश्किल में पड़ सकती हो, अन्नू ! यदि मैं तुम्हारे साथ रहूंगा, तो तुम्हें बचा सकूंगा।" ऐसा कह कर वह अन्नू के साथ हो लिया ।
वे बहुत देर तक चलते ही रहे। उन्हें लग रहा था कि पता नहीं वे कभी झील तक पहुंच भी पाएंगे या नहीं । अचानक पेड़ों के छंटते ही खुला मैदान दिखा और उसमें उन्हें वह सुंदर-सी झील दिखाई पड़ी। वह जंगल के बीच झिलमिला रही थी । आसमान का नीला रंग उसके पानी में झलक रहा था । झील के चारों ओर रंगबिरंगे, सुंदर-सुंदर फूल खिले हुए थे। थोड़ी देर के लिए तो अन्नू और जीतू को लगा कि वे स्वर्ग में आ गए हैं। जीतू तो उस दृश्य को देख कर दंग था और बिल्कुल चुपचाप था। दोनों बच्चे मारे खुशी के झील की ओर दौड़ पड़े। अन्नू अपनी मां के लिए कुछ फूल तोड़ कर ले जाना चहाती थी। झील के एक किनारे पर वही लेंबे-लंबे सरकंडे उगे हुए थे, जो उन्हें चाहिए थे। दोनो बच्चे सरकंडे काटने के लिए तुरंत नीचे उतर गए। तभी उन्होंने पीछे से आ रही एक अजीब सी आवाज़ सुनी। वे पीछे मुड़े, लेकिन उन्हें कोई नहीं दिखा और फिर वे अपने काम में लग गए। कुछ मिनटों के बाद किसी ने पीछे से आवाज़ दी, “मेरे बगीचे में कौन है खबरदार जो किसी ने मेरी इजाजत के बिना सरकंडे तोड़ने कीं हिम्मत की।"
इस बार जब उन्होंने मुड़ कर देखा तो एक अजीब-सी दिखने वाली बुढ़िया थी । वह इतनी झुर्रीदार थी कि उसकी चमड़ी मुड़-मुड़ कर जगह-जगह से लटक रही थी। उसकी नाक लंबी और नुकीली थी। उसके कान भी लंबे-लंबे थे। आंखें हरी और चमकदार थीं। उसने जो साड़ी पहन रखी थी, वह पुरानी-सी थी और उसमें जगह-जगह थिगड़े लगे हुए थे अन्नू और जीतू इतने घबरा गए कि वहाँ से तुरंत ही भागना चाहते थे। जीतू का दिल तो इतनी जोर से धक-धक कर रहा था कि उसे लगा कि मां को भी इसकी आवाज़ सुनाई पड़ रही होगी।
बुढ़िया मुस्करा कर बोली, "मेरे प्यारे-प्यारे बच्चो! तुम इस बूढ़ी गरीब दादी मां से घबरा रहे हो! इधर आओ! डरो मत। मेरे घर में ढेर सारी मिठाइयां और समोसे रखे हैं और क्या तुम इन फूलों से भी ज्यादा सुंदर फूल देखना चाहते हो? तुम लोगों को यहां आ कर मेरा बगीचा देखना चाहिए। पूरी दुनिया में इससे खूबसूरत जगह कोई नहीं है।"
जीतू तो फौरन ही मिठाई, समोसे और चॉकलेट के बारे में सोच कर बेचैन हो रहा था। उसके मुंह में पानी आ गया था। उसने अभी तक खाना भी तो नहीं खाया था।
उसने अन्नू का हाथ खींचा और कान में फुसफुसा कर बोला, “चलो ! दादी अम्मा के घर चलें और कुछ खाए । मुझे बहुत भूख लगी है !"
सो अन्नू और जीतू बुढ़िया के साथ उसके घर गए। उसका घर झील के दूसरे छोर पर था। सचमुच यह बड़ी ही सुंदर जगह थी। अन्नू ने सोचा कि भले ही वह बुढ़िया अजीब-सी दिखती हैं, लेकिन वह अच्छी और नेकदिल है।
उसने बच्चों को अंदर बुलाया और बैठने को कहा। टेबल पर बहुत-सी खाने की चीजें रखी हुई थीं। बुढ़िया ने कहा, “हम लोग खाने के साथ गरमागरम चाय भी पीएंगे, लेकिन तुम में से किसी को कुएं पर जा कर पानी लाना होगा। घर में एक बूंद पानी नहीं है। जीतू बेटे ! क्या तुम पानी ले कर आओगे?” जीतू को कुएं से पानी लाने की बात बिल्कुल पसंद नहीं आई, लेकिन स्वादिष्ट खाने के बारे में सोच कर उसने बात मान ली।"
जीतू कुएं पर पहुंचा और वह उसमें बाल्टी डुबोने ही वाला था कि उसकी नजर कुएं की मुंडेर पर बैठे हुए एक मोटे से मेंढक पर पड़ी। जीतू को देखते ही मेंढक ने कहा, "बुढ़िया के बहकावे में मत आना । असल में वह एक जादूगरनी है। वह तुम दोनों को मार कर खाना चाहती है। उसने तुम्हें इसीलिए कुएं पर भेजा है, जिससे कि वह पहले तुम्हारी बहन को खा सके। दौड़ कर जाओ और अपनी बहन को बचाओ।"
जीतू घर की तरफ वापस भागा और रास्ते में ही उसने अन्नू को बचाने की योजना सोच ली। जैसे ही वह घर पहुंचा उसने जोर की आवाज़ लगाई, “दादी मां ! दादी मां !! कुएं पर एक बड़ा मोटा-सा मेंढक है। तुमने उसे देख है?" जादूगरनी को मेंढक खाना बहुत पसंद था। उसने तुरंत ही जीतू का हाथ पकड़ा और कहा, 'आओ मुझे दिखाओ, वह कहां है। जल्दी चलों! नहीं तो वह भाग जाएगा। मुझे मेंढक का भुना हुआ मांस बहुत पसंद है।"
जीतू बुढ़िया को कुएं पर लाया और बोला, “दादी मां अंदर देखो! तुम्हें यह अंदर की दीवाल पर दिख जाएगा।” जादूगरनी ने कहा, "कहां है? मुझे दिखाई नहीं दे रहा है।" जीतू ने कहा, “अपना सिर नीचे झुकाओ और थोड़ा झुक कर कुएं की भीतरी दीवार पर देखो। तब तुम्हें दिखेगा।" जादूगरनी ने कहा, "मुझे अभी भी नहीं दिखाई दे रहा है।" उसने थोड़ा और झुकते हुए कहा, "वहां कहां है?" जीतू ने बनावटी रूप से कहा, "वह और नीचे चला गया है। अगर तुम थोड़ा और झुको तो तुम उसे पकड़ लोगी।" वह लालची बुढ़िया और झुक गई। मौका देखकर जीतू ने उसे जोर से धक्का दिया और बुढ़िया कुएं में गिर कर डूब गई।
अन्नू चिल्लाई, “अरे जीतू ! यह तुमने क्या किया?" जीतू ने कहा, “मैंने जादूगरनी से हम दोनों को बचा लिया। वह हमें मार कर खाना चाहती थी। मुझे मेंढक ने यह बात बताई थी।" उन्होंने मेंढक को धन्यवाद दिया। वह अब कुएं के किनारे पर बैठा हुआ था। जीतू ने मेंढक को हाथ में ले कर उसे प्यार से सहलाया और कहा, "तुम हमारे अच्छे मित्र हो।" तभी अचानक एक तेज रोशनी चमकी और तेज आंधियां चलनी शुरू हो गई। धीरे-धीरे जब सब कुछ सामान्य हुआ तो बच्चों ने देखा, एक व्यक्ति उनके सामने खड़ा था।
उसने खुश होकर आवाज़ दी, "अन्नू ! जीतू !!" वे भी चिल्लाए - "पापा ! पापा!" और दौड़ कर अपने पिता की बाहों में लिपट गए।
अन्नू ने पूछा, “क्या हुआ था पापा ? आप इतने दिनों तक कहां थे?"
पिता ने कहानी बताई, दो साल पहले जब मै जंगल शिकार के लिए गया था तो इस जादूगरनी ने मुझ पर जादू करके मुझको एक मेंढक बना दिया था। उसने कहा बार मुझे पकड़ने और खाने की कोशिश की, लेकिन मैं बच कर भाग निकलता था। आज भला हो मेरे बहादूर बच्चों का जो मैं हमेश के लिए इस जादू से आजाद हो गया।"
फिर सबने मिल कर सरकंडे इकट्ठे किए और घर वापस लौटे। अन्नू और जीतू की मां खिड़की पर दीया जला कर दरवाजे पर उनके आने का इंतजार कर रही थी जैसे ही उसने पहचाना कि बच्चों के साथ कौन व्यक्ति आ रहा है, यह मारे खुशी उनसे मिलने दौड़ी। पूरा परिवार फिर से मिल गया और वे खुशी-खुशी रहने लगे।
जीतू बुढ़िया को कुएं पर लाया और बोला, “दादी मां अंदर देखो! तुम्हें यह अंदर की दीवाल पर दिख जाएगा।” जादूगरनी ने कहा, "कहां है? मुझे दिखाई नहीं दे रहा है।" जीतू ने कहा, “अपना सिर नीचे झुकाओ और थोड़ा झुक कर कुएं की भीतरी दीवार पर देखो। तब तुम्हें दिखेगा।" जादूगरनी ने कहा, "मुझे अभी भी नहीं दिखाई दे रहा है।" उसने थोड़ा और झुकते हुए कहा, "वहां कहां है?" जीतू ने बनावटी रूप से कहा, "वह और नीचे चला गया है। अगर तुम थोड़ा और झुको तो तुम उसे पकड़ लोगी।" वह लालची बुढ़िया और झुक गई। मौका देखकर जीतू ने उसे जोर से धक्का दिया और बुढ़िया कुएं में गिर कर डूब गई।
अन्नू चिल्लाई, “अरे जीतू ! यह तुमने क्या किया?" जीतू ने कहा, “मैंने जादूगरनी से हम दोनों को बचा लिया। वह हमें मार कर खाना चाहती थी। मुझे मेंढक ने यह बात बताई थी।" उन्होंने मेंढक को धन्यवाद दिया। वह अब कुएं के किनारे पर बैठा हुआ था। जीतू ने मेंढक को हाथ में ले कर उसे प्यार से सहलाया और कहा, "तुम हमारे अच्छे मित्र हो।" तभी अचानक एक तेज रोशनी चमकी और तेज आंधियां चलनी शुरू हो गई। धीरे-धीरे जब सब कुछ सामान्य हुआ तो बच्चों ने देखा, एक व्यक्ति उनके सामने खड़ा था।
उसने खुश होकर आवाज़ दी, "अन्नू ! जीतू !!" वे भी चिल्लाए - "पापा ! पापा!" और दौड़ कर अपने पिता की बाहों में लिपट गए।
अन्नू ने पूछा, “क्या हुआ था पापा ? आप इतने दिनों तक कहां थे?"
पिता ने कहानी बताई, दो साल पहले जब मै जंगल शिकार के लिए गया था तो इस जादूगरनी ने मुझ पर जादू करके मुझको एक मेंढक बना दिया था। उसने कहा बार मुझे पकड़ने और खाने की कोशिश की, लेकिन मैं बच कर भाग निकलता था। आज भला हो मेरे बहादूर बच्चों का जो मैं हमेश के लिए इस जादू से आजाद हो गया।"
फिर सबने मिल कर सरकंडे इकट्ठे किए और घर वापस लौटे। अन्नू और जीतू की मां खिड़की पर दीया जला कर दरवाजे पर उनके आने का इंतजार कर रही थी जैसे ही उसने पहचाना कि बच्चों के साथ कौन व्यक्ति आ रहा है, यह मारे खुशी उनसे मिलने दौड़ी। पूरा परिवार फिर से मिल गया और वे खुशी-खुशी रहने लगे।
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