evergreen stories छोटू और टियो
evergreen stories छोटू और टियो
जब छोटू स्कूल से चला तो ठंडी हवाएं चल रही थीं। घर पहुंचने के लिए अभी उसे एक लंबा रास्ता पार करना था। उसका स्कूल पहाड़ी की चोटी पर था। उसके घर से स्कूल तक का रास्ता ऊंचा-नीचा, घुमावदार और घने जंगल के किनारे से होता हुआ जाता था। छोटू मारे ठंड के कांप रहा था और उसने अपने कोट की टोप खोल कर आंख के ऊपर तक ढंक लिया था वह घर पहुंचने के लिए जल्दी-जल्दी चल रहा था। उसे मालूम था कि मां दरवाजे पर खड़ी चिंता में उसकी राह देख रही होगी।
जैसे ही वह छोटू घर पहुंचा, उसकी मां ने नाराजगी से उसकी तरफ देखा और चिल्ला कर बोली, "कितनी बार तुमको समझाया है कि स्कूल की छुट्टी होते ही सीधे घर आ जाया करो! खेलने में देर मत किया करो! तुम जानते नहीं, शाम को देर से अकेले घर लौटना तुम्हारे लिए कितना खतरनाक हो सकता है। मुझे हमेशा तुम्हारी चिंता लगी रहती है।" मां की बातों का छोटू पर तनिक भी असर नहीं हुआ। उसने यही बात कई बार सुनी थी। उसे लगता था कि उसकी मां उसे छोटा-सा बच्चा समझती है, जबकि वह सात साल का था और अब बड़ा हो चुका था।
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घर आने के बाद छोटू अपना होमवर्क करता, रात का खाना खाता और सो जाता। उसे लगता था, उसकी जिन्दगी बड़ी नीरस है। उसने सोचा, "कितना अच्छा हो, अगर मुझे स्कूल न जाना पड़े! मेरी इच्छा होती है कि मै सारा दिन अपने दोस्तों के साथ खेलूं और जहां भी मेरा मन करे, वहां जाऊ। खास कर जंगल के अंदर! मुझे तो यही असली पाई लगनी है। यह क्या कि दिन भर क्लास में बैठे रहो, यह पढ़।, वह लिखो !"
छोटू की मां हमेशा उसे जंगल के बारे में खबरदार करती थी। वह कहती थी, "यह बहुत खतरनाक जंगल है। वहां बड़े-बड़े उड़ने वाले ड्रैगन हैं, जो कि छोटे बच्चों को खाना पसंद करते है।" छोटू तरह-तरह की कल्पनाएं करता था। कभी वह सोचता, "डरावने दैत्यों और ड्रैगन को पालतू जानवरों की तरह पाल लेगा। उन्हें अपने घर ला कर उनके साथ खेलेगा। जब उसके दोस्त उससे मिलने आएंगे तो इन खतरनाक जानवरों को देख कर डरेंगे, और वह हीरो बन जाएगा।"
उसकी एक ही ख्वाहिश थी मां को बिना बताए जंगल के अंदर जाना। छोटू अब और नहीं रुक सकता था। एक दिन सुबह-सुबह उसकी मां ने कहा, "छोटू ! तुम्हारी मौसी टीना बहुत बीमार हैं। मैं उन्हें देखने जा रही हूं। मैंने टेबल पर तुम्हारा खाना रख दिया है। तुम खा लेना। अब खुद से जल्दी तैयार हो और स्कूल जाओ। दरवाजे पर ध्यान से ताला लगाना और चावी अपने पास ही रखना। मुझे आने में शाम हो जाएगी। मेरा अच्छा बेटा! अच्छे से रहना!" मां ने पुचकारा और चली गई। छोटू बहुत ही उत्साहित था। उसे स्कूल में चैन नहीं आ रहा था। जैसे ही स्कूल की छुट्टी हुई, वह घर की ओर भागा। उसने अपनी जीन्स और टी-शर्ट पहनी और जंगल की ओर निकल गया। उसका दिल जोरों से धड़क रहा था। उसके मन में यही ख्याल आ रहा था कि पुराने और चरमराते हुए पेड़ो के पीछे बहुत-से दैत्य और ड्रैगन छुपे हुए होंगे और मुझ पर झपटने की फिराक में होंगे।
वह लगातार घने जंगल की ओर बढ़ता हुआ चला जा रहा था। अचानक उसे एक अजीब-सी चीज दिखी। उसके ठीक सामने आड़ी-तिरछी शाखओं और झाड़ियों के बीच उसे अजीब-सी आकृति की एक झलक दिखी। चमकदार रंग और धुएं का एक गुबारा। उसे कुछ-कुछ यूं लगा, जैसे एक बड़ा दैत्य झाड़ियों में छुपा हो। छोटू वहीं रुक गया। उसकी हिम्मत ने जवाब दे दिया था। वह इस जगह से और जंगल से निकल कर भाग जाना चाहता था। उसने मन ही मन सोचा, "हे भगवान ! अब क्या होगा? मुझे अपनी मां की बात माननी चाहिए थी। मुझे जंगल में नहीं आना चाहिए था।"
एक गहरी सांस ले कर उसने आगे बढ़ना चाहा। अचानक उसका पैर किसी चीज पर पड़ा। उसने देखा कि एक पुराने पेड़ के पीछे से एक लंबी, कांटेदार और चमकदार शल्कों से ढकी हुई पूछ सरक रही थी। उसकी तो सांस ही फूल गई और थोड़ी-सी चीख निकल गई। पेड़ के पीछे से भी दर्द में कराहने की "अइयो" आवाज़ आई। छोटू कांप उठा और कंपकंपी-सी उसके दांत किटकिटाने लगे। डर के मारे वह उसी जगह पर जम-सा गया। उसने अपने दांत किटकिटाने के अलावा किसी और के भी दांतों के किटकिटाने की तेज आवाज़ सुनी।
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अप्पा ने सोचा, यह जो भी होगा उसके बहुत सारे दांत होंगे। उसने आंखों की कनखी से देखा कि पेड़ के पीछे से निकल कर कुछ सामने आ रहा था। यह किसी जानवर की थूथन थी, जो हरे और पीले रंग की थी और उसके नथुनों से धुएं के छल्ले निकल रहे थे।
छोटू उस जानवर की थूथन को बाहर निकलते हुए बड़ी हैरानी और उत्सुकता से दखे रहा था। दांतो के किटकिटाने की आवाज़ अब तेज हो चली थी। छोटू अचंभे में पड़ गया, क्योंकि उसने महसूस किया कि वह ड्रैगन भी उसकी तरह ही डरा हुआ था। उसके सारे दांत किटकिटा रहे थे और वे कम-से-कम सौ तो जरूर रहे होंगे। एक जोड़ी डरी हुई आखों ने पेड़ के पीछे से छोटू को देखा।
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काफी देर तक छोटू और ड्रैगन एक-दूसरे की तरफ सहमी हुई निगाहों से निहारते रहे। धीरे-से छोटू ने ड्रैगन की ओर मुस्कराहट भरा चेहरा किया। उसे देख कर ड्रैगन भी थोड़ी हंसा और फिर छोटू की तो हंसी ही छूट गई। वह ड्रैगन अभी बच्चा ही था।
उसके पैर नाटे और मोटे थे, लेकिन उसके पंजे बड़े भारी थे। उनमें पीछे की तरफ मुलायम कांटे थे। उसके बड़े-बड़े, हरे कानों के भीतरी हिस्सों में लाल वालों के गुच्छे उगे हुए थे। ड्रैगन के पूरे शरीर में इंद्रधनुषी रंगो के चमकदार शल्क झिलमिला रहे थे। छोटू ने पूछा, "तुम्हारा नाम क्या है?"
ड्रैगन ने जवाब दिया, "टियो। मैं जंगल के भीतर पहाड़ पर रहता हूं। मैंने सोचा कि जरा दूर तक टहल आऊं और इस चक्कर में मैं रास्ता भटक कर यहां आ गया। मेरी मां को पता चले, इससे पहले मुझे घर पहुंचना होगा। उसने मुझे समझाया था कि जंगल के किनारे न जाऊं, क्योंकि यहां जो लोग रहते हैं, वे बड़े खतरनाक हैं और हमें मार डालेंगे। इसीलिए मैं तुम्हें देख कर घबराया हुआ था।"
छोटू ने सोचा कि सारी मांएं एक-सा सोचती हैं और वे कितना गलत सोचती हैं।
वह और टियो अच्छे दोस्त बन गए। उन्होंने टियो के घर तक पहुंचने वाला रास्ता खोज लिया, लेकिन टियो ने वादा किया कि वह अगले दिन फिर वापस आएगा और छोटू के साथ खेलेगा।
टियो खुशी-खुशी जंगल के भीतर चला गया। अब उसे एक दोस्त जो मिल गया था। छोटू भी घर के लिए भागा। वह मां के पहुंचने से पहले घर पहुंच जाना चाहता था।
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