वाई-फाई का नफा नुकसान

वाई-फाई का नफा नुकसान






वाई-फाई का नफा नुकसान

इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले लोगों के लिए वायरलैस तकनीक के आने से काफी सुविधा हो गई है । जहां कुछ लोग  इसके फायदे गिना रहे हैं वहीं एक वर्ग ऐसा भी है जो इसके संभावित दुष्प्रभावों से चिंतित हैं । कंप्यूटर, इंटरनेट और ई-मेल  से शुरू होकर सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में होने वाली नित नई खोज से ऐसा लगता है कि आपसी बातचीत से लेकर दिनचर्या के हर काम में संचार तकनीक ने क्रांति ला दी है ।

            कुछ साल पहले जहां कमरे के किसी कोने में बैठकर इंटरनेट के जरिए बाहरी दुनिया से संपर्क स्थापित किया जाता था वहीं अब लैपटॉप और वायरलैस तकनीक के आने से यह काम और भी आसान हो गया है

                        वायरलैस वाई-फाई तकनीक यानी बिना तारों के झंझट के कंप्यूटर को इंटरनेट से कनेक्ट करना और सबसे बड़ा फायदा यह कि घर या दफ्तर से बाहर भी इंटरनेट से जुड़ा रहा जा सकता है

                आईआईटी में कंप्यूटर साइंस विभाग में प्रोफेसर बताते हैं कि वाई-फाई तकनीक किस तरह से काम करती है ।

                                  उनहोंने बताया, “इस तकनीक में ऐसे फ्रिक्वैंसी बैंड को इस्तेमाल में लया जाता है जिसे आईएसएम बैंड कहते हैं और मुफ्त उपलब्ध है यानी इसके लाइसेंस के लिए कंपनियां सरकार को पैसे का भुगतान नहीं करती इस फ्रीक्वैंसी बैंड में एक एक्सेस प्वाइंट और एक Computer होता है । एक्सेस प्वाइंट इंटरनेट से कनेक्ट रहता है और डाटा पैकेट आईएसएम बैंड के जरिए कंप्यूटर से एक्सेस प्वाइंट तक जाता है और एक्सेस प्वाइंट से इंटरनेट पर चला जाता है ।“

                                        वाई-फाई तकनीक से हम कंप्यूटर को उसी तरह से उपयोग में ला सकते हैं जैसे मोबाइल फोन को इस्तेमाल में लाना संभव हुआ है । यानी बिना तारों के एक जगह बंधे रहकर काम करने की जरूरत कम हो गई है । लेकिन कई समानताओं के बावजूद मोबाइल फोन और वाई-फाई तकनीक में अंतर है

             प्रोफ़ेसर कहते हैं कि मोबाइल फोन में टावर की रेंज 10-15 किलोमीटर तक हो सकती है जबकि वाई-फाई तकनीक में यह क्षमता महज 50-100 मीटर तक ही होती है । इसलिए इस तकनीक को दफ्तरों या घरों में इस्तेमाल में लाया जाता है

               कुछ विशेषज्ञों ने यह सवाल उठाए हैं कि लंबे समय तक वाई-फाई तकनीक का इस्तेमाल करने और रेडयो तरंगों से विकिरण के प्रभाव में रहना सेहत के लिए नुकसानदेह  हो सकता है

                                                                                         मोबाइल फोन के इस्तेमाल से स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचता है या नहीं इस पर तो रिसर्च चल रही है पर अब वाई-फाई तकनीक के प्रयोग और स्वास्थ्य पर उसके प्रभाव पर रिसर्च किए जाने की जरूरत समझी जा रही है ।

               लंबे समय तक रेडियो तरंगों के विकिरण में आने से किस तरह के प्रभाव होते हैं  इस पर शोध से जुड़े स्वीडन में कैरोलिन्सका इन्स्टीट्यूट के ओली योहान्सिन बताते हैं, “अभी तक के नतीजों से लगता है कि गुणसूत्रों में कमी आती है,एकाग्रता भी प्रभावित होती है याद्दाश्त कमजोर होती है यहां तक की कैंसर की आशंका को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता है

                           महत्वपूर्ण  सवाल ये है कि वाई-फाई तकनीक में विकिरण जिस स्तर पर होता है क्या वह हानिकारक है ब्रिटेन में ये तकनीक बेहद लोकप्रिय हो रही है और स्कूलों में भी प्रयोग में लाई जा रही है

                        कई स्थानों पर मोबाइल फोन के मास्टर या टायर की तर्ज पर वाई –फाई तकनीक को सक्रिय करने के लिए मास्टर्स लगाई जाती है

            पिछले कुछ समय से जो लोग व्यवहार में बदलाव या चिड़चिडा़पन महसूस कर रहे हैं उन्हें आशंका है कि इसका कारण रेडिएशनया विकिरण के प्रभाव में आना हो सकता है ऐसे लोगों को हाइपर सेंसटिव टू रेडिएशन कहा जाता है

            ऐसी ही एक महिला सिल्विया कहती हैं, “मुझे अपने सिर और चेहरे में जलन महसूस होती है मुझे ऐसा लगता है कि मेरे पेट में गड़बड़ और मुझे उल्टी होने वाली है साथ ही मेरे सिर के पिछले हिस्से में दर्द होता है ।“

            हालांकि अमरीका की कैलीफोर्निया यूनिवर्सिटी में Computer विभाग के प्रोफेसर कहते हैं कि अभी इस तरह का कोई नतीजा नहीं आया है जिससे पता चलता हो कि विकिरण का स्तर स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और अगर रेडिएशन से बचने के जरिए से मोबाइल फोन और वाई-फाई की तुलना करें तो वाई-फाई का इस्तेमाल करना ज्यादा सुरक्षित है ।

            उन्होंने कहा, “सैलफोन हम अपने कान पर लगाकर ही इस्तेमाल में लाते हैं इसलिए स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव की आशंका हो सकती है लेकिन वाई-फाई तकनीक के जरिए लैपटॉप कंप्यूटर का उपयोग शरीर से थोड़ी दूरी पर होता है और इसी दूरी के कारण विकिरण का स्तर तुलनात्मक रूप से कम हो जाता है । इसी कारण वाई-फाई से कोई खास हानि नहीं पहुंचनी चाहिए ।“

           विश्व स्वास्थ्य संगठन या W.H.O. का भी अभी तक यही मानना है कि वाई-फाई कनेक्शन से विकिरण का स्तर निर्धारित सीमा से काफी कम है । इसलिए चिंता की बात नहीं है यूनिवर्सिटी आफ रोम में प्रोफ़ेसर और W.H.O. में काम कर चुके माइकल रेपाचोली कहते हैं कि अगर दुष्प्रभावों के बारे में प्रमाण मिलते हैं तो जरूरी कदम उठाए जाएंगे ।

            उनका कहना है, “जब विश्व स्वास्थ्य संगठन की वेबसाइट पर यह लिखा गया था तो उसका यही अर्थ था कि अभी तक वाई-फाई सुविधा से स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचता है । इस बारे में पुख्ता जानकारी नहीं है । जब भी हम यह जानने में सफल होंगे कि हां, इससे नुकसान होता है तो इस पर पुनर्विचार करेंगे क्योंकि रिव्यू पैनल हर स्टडी या शोध पर पूरी तरह विचार करने के बाद ही किसी निर्णय पर पहुंचता है ।“

           लेकिन ब्रिटेन में हैल्प प्रोटेक्शन एजेंसी के चेयरमैन सर विलियम स्टीवर्ट इस बात से इनकार करते हुए कहते हैं, “वो गलत है क्योंकि स्वास्थ्य को हानि पहुंच सकती है । मैं इतना ही कहूंगा कि उन्हें अपने बयान पर पुनर्विचार करना चाहिए ।“

           जहां कुछ जानकार  रेडिएशन से होने वाले प्रभाव पर और रिसर्च किए जाने और बड़े पैमाने पर वाई-फाई तकनीक के इस्तेमाल से पहले उनके नतीजों को समझने की आवश्यकता महसूस कर रहे हैं वही कुछ विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि वाई-फाई तकनीक से विकिरण का स्तर बेहद कम है और नुकसानदेह तो बिल्कुल भी नहीं है

           पर शायद इस बहस ने वायरलैस का प्रयोग करने वाले लोगों को दोबारा सोचने पर जरुर मजबूर कर दिया है इस कोरोना काल में ।

 

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