totaram ka dar

तोताराम का डर 

 

तोताराम का डर

 

मुन्नू मेरे बचपन का दोस्त था। रिश्ते में वह मेरा मामा लगता था और उम्र में मुझसे एक साल बड़ा भी था, लेकिन पढ़ाई में मुझसे एक साल पीछे था। हम दोनों बड़े सीधे-सादे, दुबले-पतले राजा बेटे किस्म के लड़के थे। पढ़ाई तथा अन्य गतिविधियों में अव्वल लेकिन दौड़-भाग, खेलकूद में फिसड्डी। न तो हम और बच्चों की तरह लट्टू घुमाते, कंचे खेलते, न पतंग उड़ाते। हम सिर्फ ऐसा करते हुए बच्चों से ईर्ष्या करते। क्योंकि हमारे घरवालों की नजर में ये सब गन्दे, गंवार और झगड़ालू बच्चों के खेल थे।

 

ऐसा नहीं कि हमारा कभी किसी से झगड़ा नहीं होता था, लेकिन तू तू-मैं मैं से ही बात निपट जाती। मारपीट की नौबत ही नहीं आती।

 

मान लो किसी से झगड़ा हुआ तो छाती फुलाकर उसके ठीक सामने नाक से नाक भिड़ाकर जा खड़े होते और फिर ऐसा संवाद होताः

 

क्या है ?

क्या है ?

क्या बात है?

क्या बात है?

क्या समझता है अपने आपको?

तू क्या समझता है ?

बहुत गरमी आ गई है।

तुझे बहुत गरमी आ गई है।

एक पड़ेगी तो होश ठिकाने आ जाएंगे।

तुझे एक पड़ गई तो सब भूल जाएगा।

एक दूंगा तो मुंह टेढ़ा हो जाएगा । दूं?

देके दिखा !

मेरे मुंह मत लग ।

तू भी मेरे मुंह मत लग ।

क्या कर लेगा?

तू क्या कर लेगा?

शकल देखी है अपनी ?

तूने देखी है ?

चल फूट!

फूट !!

 

और दोनों एक-दूसरे को घूरते हुए अपने-अपने रास्ते चले जाते । लेकिन तोताराम से हुए झगड़े की बात ही अलग थी।

 

हमारा स्कूल इंडस्ट्रियल एरिया में था और इंडस्ट्रियल एरिया के बच्चे कद-काठी और ताकत में हमसे डबल ही होंगे । ऐसा ही एक लड़का था Totaram । काला, मोटा और खूंखार। थूकता तो एक फुट दूर जाता। एकदम कहानियों के राक्षस जैसे।

 

तोताराम हमें बहुत तंग करता था । हम कुछ नहीं करते तब भी हमें मारता रहता। कभी सिर पर टप्पल लगा जाता। कभी कोहनी मार जाता, कभी टंगड़ी मारकर गिरा देता। उसके डर से हम खाने की छुट्टी में कुछ खा भी नहीं पाते । वह देख लेता तो छीनकर खा जाता। हमें सताने में उसे बहुत मजा आता था। जहां तक होता हम उससे दूर-दूर रहने की कोशिश करते पर जाने कैसे तोताराम को पता चल जाता और वो भी आ जाता ।

 

एक दिन हमने सोचा बस बहुत हो गया । आज निपट ही लेते हैं - आर या पार । जो होगा देखा जाएगा। शाम का समय था । फुटबॉल का खेल खत्म हो चुका था और बच्चे जा रहे थे । मैदान पर कुछ-कुछ अंधेरा भी हो चला था। मुन्नू ने तोताराम को अकेले में बुलाया और उससे भीड़ गया । तोताराम कुछ समझता कि मैं भागता हुआ पहुंचा और पीछे से तोताराम को जोर का धक्का दे दिया। इस अचानक हमले से तोताराम हड़बड़ा गया और धड़ाम से नीचे गिर गया। मुन्नू ने फौरन उसकी दोनों टांगें पकड़ी और किसी तरह उसके घुटनों पर चढ़ बैठा। इससे पहले कि तोताराम उठने की कोशिश करे मैंने उसका हाथ पकड़कर मरोड़ दिया। इसमें कोई शक नहीं कि तोताराम ने बहुत हाथ-पैर चलाए लेकिन हमने भी हिम्मत नहीं हारी। हाथ-पांव से वह जितना मार सका, उसने मारा लेकिन हमने उसे उठने नहीं दिया।

 

अब हाल यह था कि तोताराम जमीन पर चित पड़ा था। मुन्नू उसके दोनों घुटने दबाए उसकी जांघों पर बैठा था और मैं उसकी दोनों बांहें मरोड़े उसकी छाती पर बैठा था। तीनों हांफ रहे थे और लार टपका रहे थे, पर कोई किसी को छोड़ नहीं रहा था। तोताराम पूरी तरह हमारे काबू में था ।

 

लेकिन अब ! अब क्या करें? इसे छोड़ा नहीं कि इसने हमारी चटनी बनाई नहीं । बैठे रहें। लेकिन कब तक?

 

अचानक दूर एक आदमी दिखाई दिया। हम चिल्लाए, “भाई साहब! ओ भाई साहब!” दो बच्चों की अति पुकार सुनकर भाई साहब थोड़ा पास आए।

 

भाई साहब! ये हमें मार रहा है!" मुन्नू दर्द से चीखा ।

 

भाई साहब! हमें बचाइए। ये हमें मारता है !” मैंने सुर में सुर मिलाया । भाई साहब ने कौतुहल से देखा। एक लड़का जमीन पर चित्त पड़ा है। दो लड़के उसके हाथ-पैर दबोचे उसके ऊपर चढ़े-बैठे हैं। और जो ऊपर चढ़े-बैठे हैं वे कह रहे हैं कि नीचे वाला उन्हें मार रहा है।

 

भाई साहब मुस्कुराए । हाथ पीछे बांधे और अपने रास्ते चले गए। अब! मैदान में दूर-दूर तक कोई नहीं था । अंधेरा हो रहा था। देर से घर पहुंचे तो मार पड़ेगी । क्या करें? कुछ नहीं सूझा तो हम दोनों जोर-जोर से रोने लगे। फिर पता नहीं कैसे अचानक हम दोनों एक साथ उठे और तोताराम को छोड़ घर की तरफ भागे। काफी दूर जाने पर पीछे मुड़कर देखा। नहीं, तोताराम हमारे पीछे नहीं आ रहा था। पर इससे क्या होता है? वह बड़े-बड़े डम मरता कभी भी आ सकता है। हांफते-हांफते घर पहुँचे।

 

अब कल ! कल क्या होगा? हम तो उससे डरते ही है, सवाल यह है कि तोताराम हमसे डरा कि नही? खुशी की बात यह हुई थी कि तोताराम भी हमसे डर गया था ।

 

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