Bichhada hua raksh top 10 hindi story

 बिछड़ा हुआ राक्षस-Bichhada hua raksh top 10 hindi story

हमारे शुरुआती मार्गदर्शक के साथ बच्चों के लिए evergreen storie का जादू खोजें। मंत्रमुग्ध कर देने वाली परियों की कहानियों से लेकर रोमांचक कहानियों तक

क्या तुम राक्षसों के होने पर यकीन करते हो ! ड्रिस्टोनिकस नाम के एक प्रोफेसर हुआ करते थे
, जो इन पर यकीन करते थे और छुपे हुए राक्षसों को खोज निकालने में उनकी महारत थी। वे एक राक्षस विशेषज्ञ थे। वे बूढ़े थे। उनके बाल मोटे और सफेद थे और उनकी लंबी सफेद दाढ़ी थी। वे एक पुराना मुड़ा-तुड़ा, काला कोट पहने रहते थे और तीन उनके गले में कम-से-कम दो या तीन ऐनकें लटकती रहती थीं। Bichhada hua raksh top 10 hindi story

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प्रोफेसर ड्रिस्टोनिकस की एक नातिन थी
, जिसका नाम डूषी था। वह छोटी-सी, सात साल की एक प्यारी बच्ची थी, जिसकी बड़ी-बड़ी, काली-काली आंखें थी। वह अपने दादाजी को बहुत चाहती थी और राक्षसों के बारे में जानने को बहुत उत्सुक रहती थी।
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डुषी ने एक दिन कहा
, “दादाजी ! असल में राक्षस-वाक्षस कुछ नहीं होते है। वे तो सिर्फ कहानी की किताबों में होते हैं।" प्रोफेसर ने डूषी की ओर देख कर, उसके सिर पर थपकी दी और कहा, “अब भी राक्षस होते हैं, परंतु वे अब थोड़े से ही बचे हैं। वे कहीं-कहीं छुपे हुए हैं। मुझे उन्हें ढूंढना है और सुरक्षित जगहों पर ले जाना है।"

"अभी हाल में ही दूर स्थित टॉर्बिया टापू में बड़े भारी-भरकम पैरों के निशान देखे गए है। वे किसी राक्षस के पैरों के निशान हो सकते हैं। मुझे वहां जाना है और पता लगाना है।"

डूषी रोमांचित हो कर, उछल कर दादाजी की गोद में बैठ गई और चिल्लाने लगी, "मैं भी वहां चलूंगी ! मैं भी आपके साथ चंलूगी!!" प्रोफेसर ने बड़े प्यार से उसे गोद से नीचे उतारा और कहा, "छोटे बच्चों के लिए यह बहुत खतरनाक हो सकता है।" कहते हुए वे अपना बैग जमाने लगे।

डूषी बहुत दुःखी हुई। उसने कहा, "मुझे आपकी बातों पर विश्वास नहीं है। कभी कोई राक्षस-वाक्षस नहीं होते थे। अगर वे थे, तो अब कहां गए?"

प्रोफेसर मुड़े और उसकी तरफ देखने लगे। उन्होंने कहा, "बहुत समय पहले बहुत सारे राक्षस, ड्रैगन और दैत्य हुआ करते थे। वे मजे से रहते थे, लेकिन धीरे-धीरे इंसानों ने उनकी जिंदगी में दखल देना शुरू कर दिया और उनका जीवन अस्तव्यस्त हो गया। पुराने जमाने में किसी की शादी तभी हो सकती थी, जब वह किसी राक्षस को मार कर अपनी ताकत दिखाता था। राजकुमार भी राक्षस को मार देते थे। उन्हें लगता था कि ऐसा करके वे अपनी प्रजा की रखा कर रहे हैं। इसलिए धीरे-धीरे राक्षस लुप्त होने लगे, परंतु अब भी दूरदराज के इलाकों में वे थोड़े-बहुत बचे हुए हैं। वे हमेशा छुपे रहते है और इंसानों के संपर्क में नहीं आते हैं। मुझे आशंका है कि 'स्केली स्केलिबस' नाम का राक्षस टोर्बिया के टापू में छुपा हुआ हो सकता है! इसलिए मैं वहां जा रहा हूं। अगर तुम सच में मुझसे वादा करो कि तुम अच्छे से रहोगी, धीरज रखोगी और शांत रहोगी, तो मैं तुम्हें अपने साथ ले जाऊंगा।"

डूषी खुशी के मारे चिल्ला उठी, "शुक्रिया, दादाजी।" प्रोफेसर और डूषी ने अपना-अपना बैग जामाया और हवाई अड्डे के लिए निकल पड़े। डूषी का बैग तो छोटा-सा ही था और साफ-सुथरा भी था, जबकि प्रोफेसर ने तीन बड़े-बड़े सूटकेस ले रखे थे। उनमें अजीब-अजीब उपकरण भरे हुए थे। उन्होंने एक बड़ा बिगुल भी साथ रखा था, जो एक सूटकेस में से बाहर झांक रहा था। जब वे हवाई अड्डे पहुंचे तो लोग उन्हें अचरज से देख रहे थे, लेकिन जब लोगों ने पहचान लिया कि प्रोफेसर अब तक डूषी बहुत थक गई, लेकिन वह बहुत रोमांचित भी थी। टोर्बिया की रेत पर चलते हुए वह उसमें उछल-कूद कर रही थी और जोर-जोर से बातें कर रही थी। प्रोफेसर ने डूषी को टोकते हुए कहा, "अब बिल्कुल आवाज़ मत करना । राक्षस बहुत ही शर्मील स्वभाव के होते हैं। वे भाग कर छिप सकते हैं। इसलिए बिल्कुल शांत रहना।"

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प्रोफेसर और डूषी, टापू में घने जंगलों के बीच से गुजरे। उनके पास एक जाल, एक कैमरा और वह बिगुल था। जंगल में बड़े-बड़े दैत्याकार पेड़ थे। अजीब-अजीब किस्म के पौधे और जहरीले फूलों की भरमार थी। डूषी हर चीज को बड़े अचरज से देख रही थी। काफी चलने के बाद आराम करने के लिए वे एक बड़ी गुफा के पास बैठ गए। तभी अचानक डूषी की नज़र चट्टान के पीछे बने हुए पैरों के निशानों पर पड़ी। उसने दादाजी को दिखाया। प्रोफेसर ने उन पैरों के चिह्नों को बारीकी से देखा और फिर अपना बिगुल निकाल कर उसे हौले-हौले बजाने लगे, "बां! बां! बम्प!"

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कुछ मिन्टों के लिए वहां खामोशी छाई रही। प्रोफेसर और डूषी बेसब्री से इंतजार करते रह कि शायद कहीं से कोई आवाज़ आए, तभी गुफा के भीतर से जवाब आया, "बां! बां! बम्प!" औश्र एक अजीब-सा प्राणी गुफा से बाहर आया। वह हरे रंग का था और उसका पूरा शरीर शल्कों से ढका हुआ था। वह था तो डायनासोर जैसा, लेकिन काफी छाटा और प्यारा-सा था। जैसे ही उसने प्रोफेसर और डूषी को देखा, वह ठिठक गया और उन्हें हैरानी से देखने लगा। फिर वह वहां से चला गया जैसे कि वह कुछ तलाश कर रहा था।

प्रोफेसर ने डूषी को धीरे-से बताया कि यह एक नन्हा स्केली स्केलिबस है और ऐसा लगा कि यह बच्चा अपने परिवार से बिछड़ गया है। वह बिल्कुल अकेला है। उन्होंने देखा कि वह नन्हा राक्षस 'बां-बां' करता हुआ यहां-वहां घूम कर शायद अपने परिवारजनों को ढूंढता रहा और अंततः हार कर फिर से गुफा के अंदर चला गया।

डूषी ने कहा, "दादाजी! हमें इसका परिवार ढूंढना चाहिए।"

प्रोफेसर ने कहा, “बिल्कुल, हूम पूरी कोशिश करेंगे। चलो, हम टापू के बाकी हिस्से में उन्हें तलाशते हैं।"

उन्होंने हर जगह घूम-घूम कर तलाश । दुर्लभ चिड़ियों और पौधों की तस्वीरें

खींची और राक्षसों को भी खोजते रहे, लेकिन उन्हें कुछ नहीं मिला।

जब अंधेरा होने लगा, तो वे जहाज पर वापस लौट आए। दूसरे दिन वे फिर से टापू पर आए। इस तरह पांच दिन बीत गए और लौटने का वक्त आ गया।

आखिरी दिन डूषी ने कहा, "दादाजी! प्लीज मुझे अपना बिगुल दीजिए।" वे टापू के दुसरे छोर की ओर बढ़ रहे थे और डूषी थोड़ी-थोड़ी देर में इस बिगुल को हौले-हौले बजा रही थी।

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अचानक उन्होंने सुना कि कुछ पेड़ों के पीछे से वही 'बां! बां! की आवाजें आ रही थीं। वे आवाज़ की तरफ दौड़े और उन्होंने देखा कि एक नन्हा स्केली स्केलिबस पैर में चोट लिए हुए पड़ा था।

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डूषी ने खुशी से कहा, “शायद यह उसका भाई हो।”

प्रोफेसर ने जहाज से अपने सहायकों को फोन करके बुलाया। उनकी मदद से उसके घाव की मरहमपट्टी की गई और उस नन्हे राक्षस को संभाल कर गुफा तक पहुंचाया गया।

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डूषी और उसके दादाजी ने दूर से देखा कि दो छोटे-छोटे राक्षसों ने एक-दूसरे को देख कर अभिवादन किया और खुश हो कर वे दानों गुफा के अंदर ओझल हो गए। प्रोफेसर ने कहा, "अच्छा हुआ कि अब वे दोनों साथ-साथ हैं। डूषी यह निर्जन टापू इनके लिए सबसे बहतर जगह है।"

बहुत-से नये और रोमांचकारी अनुभवों के साथ प्रोफेसर और डूषी टोर्बिया से लौटे और डूषी के आठवें जन्मदिन पर प्रोफेसर ड्रिस्टोनिकस ने उसे एक नया बिगुल भेंट किया।

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